Saturday, May 14, 2016

Elephanta caves - historical place to visit in Mumbai

नमस्कार मेरे दोस्तों, मई महीना शुरू हो गया है और गर्मी जोरो शोरो से बढ़ रही है लेकिन एक बात है, मई महीने में ही सभी पाठशालाओं को छुट्टियां मिल जाती है. आपने भी इन छुट्टियों में किसी अद्भुत एवं खूबसूरत जगहों पर छुट्टियां बिताने की सोच रखी होगी. आज मैं मेरे मुंबई के सफर के बारे में कुछ रोचक बातें बताने वाला हूं. मुंबई मेरा पसंदीदा ट्रेवल डेस्टिनेशन है, आप सभी को तो पता ही है की मुंबई देश की इकोनॉमीकल राजधानी है. मुंबई शहर का विकास अंग्रेजो के शासन में हुआ. वैसे देखा जाए तो मुंबई सात छोटे-छोटे द्वीपों से बना हुआ एक शहर है. इसकी आबादी आज आसमान को छू रही है, लेकिन इसी आबादी वाले शहर में बहुत सारी ऐसी चीजें हैं कि जो आप देखना पसंद करोगे. पिछले साल जब छुट्टियां थी तब मैं भी मेरे दोस्तों के साथ मुंबई देखने के लिए चल पड़ा था. मैं अब थोड़ा आपको मुंबई के बारे में बताना चाहता हूं. मुंबई भारत के महाराष्ट्र राज्य की राजधानी है और लगभग तीन से चार करोड़ लोक मुंबई में रहते हैं. अंग्रेज़ों के जमाने से ही मुंबई का बहुत विकास हुआ है और अंग्रेजों ने मुंबई में कई ऐसी जगह विकसित की है की जो आज पर्यटकों के लिए स्वर्ग का अनुभव देती है. वैसे देखा जाए तो मुंबई में एक से बढ़कर एक देखने की जगह है अगर सभी को इस लेख में साझा किया जाए तो पन्ने कम पड़ जाएंगे इतने सारे अद्भुत और देखने लायक डेस्टिनेशन से मुंबई भरा पड़ा है. इसलिए आज मैं मेरे मुंबई के सफ़र की कुछ खास बातें ही बताने वाला हूं जैसे कि एक है एलिफेंटा गुफ़ाएँ।  
वैसे देखा जाए तो मेरी मुंबई की जर्नी 2 दिन की थी जिसमें हमें पूरी मुंबई घूम के देखनी थी लेकिन जब हम मुंबई पहुंचे तो पता चला एक-दो दिन में पूरी मुंबई देखना संभव ही नहीं है. हमने हमारी शुरुआत पुणे से की, हम चार मित्रों ने एक साथ मुंबई देखने का सोचा था इसलिए हम चारों ही मित्र एक दूसरे को सहायता करते हुए मुंबई जाने का प्लान बना रहे थे. हमारी जर्नी शुरू हुई पुणे के लोह गांव स्थित एयरपोर्ट से. हमने इससे पहले कभी भी हवाई जहाज में सफर नहीं किया था तो इसलिए हमारे ट्रैवल को और रोमांचकारी बनाने के लिए हमने पुणे से मुंबई को जाने वाली फ्लाइट पकड़ी। वैसे देखा जाए तो पुणे से मुंबई को जाने के लिए बहुत सारे हवाई जहाज उपलब्ध है और हवाई जहाज में सुविधा भी काफी अच्छी होती है. हवाई जहाजो का Flight Schedule काफी आरामदेह और अत्यंत सरल एवं उपयोगी है. हमारे हवाई जहाज ने जैसे ही टेक ऑफ़  किया तो सारे दोस्त खुशी से झूम उठे. लगभग 1 घंटे के अंदर हम मुंबई के हवाई अड्डे पर उतर गए उसके तुरंत बाद हम गेटवे ऑफ इंडिया की तरफ गए. गेट वे ऑफ इंडिया, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से बहुत नजदीक है. लगभग 20 मिनट चलने के बाद हम सभी दोस्त गेट वे ऑफ  इंडिया तक पहुंचे। उसके बाद पानी से सफर शुरू हुआ, समुंदर बहुत ही सुंदर लग रहा था. हमने एक किराए के नौका पर बैठने का फैसला कि जो 50 रुपयों मे एलिफेंटा के किनारे तक छोड़ता था. वह पानी का सफर बड़ा ही अद्भुत एवं रोमांचकारी था लगभग 50 से 60  मिनट के बाद हम लोग दूसरे किनारे पर पहुंचे कि जहां पर एलिफेंटा की गुफाएं मौजूद थी. 
एलिफेंटा गुफाओं को घारापुरी की गुफाएं भी कहते हैं. ये गुफाएं गेटवे ऑफ इंडिया से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. कुल सात गुफाएं हैं कि जिस में प्राचीन भारत के देवी देवताओं का सुंदर वर्णन दिया हुआ है. यह गुफाएं पहाड़ को काटकर बनाई गई है और इनमें लगभग हर मूर्ति हिंदू धर्म के देवी-देवताओं से प्रेरित हुई है. इन सभी में से भगवान शंकर की त्रिमूर्ति सबसे आकर्षक है तथा बहुत ही प्रसिद्ध है. भारत सरकार के प्रयास से आज यह घारापुरी की गुफाएं विश्व में प्रसिद्ध हो गई है तथा यूनेस्को ने इन एलिफेंटा गुफाओं को विश्व धरोहर घोषित कर दिया है. आप जब भी मुंबई आए तो इन गुफाओं को देखना न भूलिएगा। इन गुफाओं को देखने के बाद हम सभी दोस्त हमारे अगले सफर की तरफ चल पड़े, हमने बाद में मुंबई में बहुत सारी जगहें देखीं लेकिन एलिफेंटा गुफाएं हमेशा हमारे मन मे घर कर गयी. ये गुफाएं हमें हमारे समृद्ध संस्कृति की याद दिलाती है. इन प्राचीन गुफाओं मे छुपा है हमारा गौरवशाली इतिहास, इसलिए इसे एक बार अवश्य देखे.

Friday, March 25, 2016

The Forest Man

आज बहुत दिनो बाद एक  महत्वपूर्ण सामाजिक विषय पर लिखने का मन हुआ कारण था "युथ कि आवाज़" के कार्यक्रम का, इस संस्था का मुख्य उद्देश्य है दुनियाभर मे चल रहे अच्छाई को सभी लोगों तक पहुंचाना। सभी को मालूम है कि आज दुनियाभर में अनेक प्रकार के अच्छे कार्य चल रहे है। अनेक सामाजिक संगठन दुनियाभर में  काम कर रहे है। अनेक महान लोग अपनी पुरी जिंदगी समाज को समर्पित कर चुके है। हम जब घर से बाहर निकलते है तब हम अपने आसपास देखते है गरीबीस्त्रियों पे हो रहे अत्याचार, छोटे मासूमो पर हो रहे अत्याचार, ग़रीब किसानों कि आत्महत्या, दहेज के लिये अपनी जान गँवाने वाली बहू बेटियाँ, लेकिन हम यह भी देखते है कि बहुत सारे संगठन और व्यक्ति इन सब सामाजिक समस्याओं का समाधान खोजने कि कोशिश कर रहे है जैसे कि माननीय सिंधुताई सपकाळ, अण्णा हजारे, मेधा पाटकर, बाबा आमटे, प्रकाश आमटे, युसफा मलाला, नेल्सन मंडेला, कैलास सत्यार्थी, नरेंद्र दाभोलकर और अन्य अनगिनत । लेकिन आज मैं आपका परिचय एक ऐसे व्यक्ती से करवा रहा हुं कि जो पूरे दुनियाभर को बचाने कि कोशिश मैं लगा है।

मैं बात कर रहा हुं जादव पायेंग कि, जी हां जादव पायेंग। हम सभी जानते हैं की हम सामाजिक प्राणी है, और समाज हि हमारा सहारा है। समाज के प्रगति के लिये और समाज मे हो रही समस्याओ को सुलझाने की कोशिश बहुत सारे लोग करते है लेकिन हम सबसे, हमारे समाज से भी महत्वपूर्ण है हमारी पृथ्वी और हमारा अधिवास। मुझे लगता है कि सभी सामाजिक समस्यांओ से बड़ी है पर्यावरण कि समस्या । अगर पृथ्वी का पर्यावरण हमारे रहने के मुताबिक नही रहेगा तो ज़रा सोचिए कि क्या होगा। जी हाँ, ज़रा सोचों कि पृथ्वी कि गर्मी लगातार बढ़ने लगे और ५० डिग्री को पार करे तो क्या होगा? सोचों कि दुनियाभर कि ऑक्सीजन अचानक खत्म हो जाए तो क्या होगा? क्या उस वक्त भी हमे इन बाकी सामाजिक समस्याओं का खयाल तक रहे गा? तो इसका जवाब है बिलकुल नहीं। इस देश से, इस दुनिया से, हम सबसे महत्वपूर्ण है हमारा पर्यावरण। अगर इस पर्यावरण का संतुलन बिगङ जाये तो हम सब मुसीबत में जायेंगे। सिर्फ हम हि नहीं तो हमारे अगले पिढ़ी का भविष्य अंधकार में चला जायेगा। प्रकृति की अद्भुत देन है जंगल। इन जंगलों की वजह से हमें फल-फूल, जलावन के लिए लकड़ी, हरियाली, आदि मिलती है। इन जंगलों को जहां कुछ माफिया लोग अपने फायदे के लिए उजाड़ रहे हैं वहीं कुछ ऐसे भी महापुरुष हैं जो इनको बचाने में लगे हुए हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई के इस दौर में भरत मंसाता, जादव और नारायण सिंह जैसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपने संकल्प से अकेले दम पर वीराने में बहार ला दी। इसिलीये आज में आपको एक ऐसे व्यक्ती के बारे में बताने जा रहा हु कि जिसने अपनी पुरी जिंदगी हमारे पर्यावरण को समर्पित कर दि है।
जादव पायेंग को संपूर्ण भारत मे जंगल मानव के नाम से भी जाना जाता है। जादव पायेंग सम्मानित है भारत सरकार कि पद्मश्री सम्मान से। जादवजी हर रोज एक हि काम करते है और वो है पेड लगाना और उनकी हिफाज़त करना। जी हा आपने सही सुना है, आज तक एक अकेले आदमी ने दुनिया मैं कही भी इतने पेड नही लगाएं है कि जितने अकेले जादवजी ने लगाएं है। जादवजी जब मात्र १६ साल कीं उम्र के थे तब उन्होने एक दिन देखा कि कई सारे साँप सुखी हुई नदी के तप्त रेत में मरे पडे है। यह देख उनका हृदय बहुत दुःखी हुआ और उन्होने उस सारे तप्त और रेतीले जगह को हरे भरे स्वर्ग मे बदलने कि कसम खाई। वह प्रदेश था आसाम के एक सुदूर जिले जोरहाट का, वहाँ पे था ब्रह्मपुत्रा नदी का विस्तृत रेतीला तट। जादवजी ने तब साल 1979 मे 20 बांस के पेड उसी जगह लगाएं जहाँ पे उन्होने वो सारे साँपो को तप्ती रेत मे मरा हुआ पाया था। उस दिन के बाद से आज तक जादव जी ने कई प्रकार के पेड़ और पौधे लगाएं है । आप सोच रहे होंगे कि एक अकेला आदमी भला कितने पेड लगा सकता है? लेकिन आपको जानके ख़ुशी और आश्यर्य होगा कि आज वो रेतीली जगह एक पुरे हरे भरे १३६० एकड़ जंगल मे परावर्तित हो गई है। आज वो जंगल कई तरह कि पक्षी और प्राणियों का घर बन चुका है। उस जंगल को मोलाई जंगल कहा जाता है कि जिसमे बहुत सारे बंगाली शेर, खरगोश, बंदर, हिरन, हाथी और कई प्रकार के पंछी देखे जाते है। 

इस जंगल मे 100 हाथी हर साल आते है और लगातार छह महिनो तक रहते भी है। जादवजी का काम सन 2008 मैं लोगो के सामने आया। जादवजी का जीवन बहुत हि सीधा साधा है, उनके पास कुछ गायें और भैंसें है कि जिनके दूध से वो अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करते है। जादवजी मानते है कि पर्यावरण असंतुलन के लिये आदमी खुद जिम्मेदार है और इसीलिए हर एक को अपनी जिम्मेदारी उठा कर हमारे पृथ्वी को प्रदूषण से मुक्त करना चाहिये और ज्यादा से ज्यादा पेड पौधे लगाने चाहिए।
सभी मानव की समस्यों से अधिक महत्वपूर्ण है पर्यावरण, अब अगर आप नही चाहते कि आपके अपने नन्हें बच्चे भविष्य मैं गैस मास्क लगाकर घुमे तो हम सभी को हमारे पर्यावरण का संतुलन बरक़रार रखना ही होगा । शायद आप मैं से कई लोगो ने फिल्म “वॉल ई” देखि होगी, कि जिस मैं हमारी पृथ्वी  प्रदुषण के कारण रहने लायक नही रहती और सबको अंतरिक्ष में जाना पडता है। मैं जब भी जादवजी के बारे मैं सोचता हु तब मुझे उस Wall E नामक रोबोट कि याद आती है कि जिसने अपनी जान पर खेल के एक छोटे से पौधे को बचा के सब मानव जाती को पृथ्वी पे वापस लौटने मैं मदद की । आज हमारे युवा पीढ़ि को जरुरत है जादवजी के आदर्शों पर चलने की, की जिससे हमारा भविष्य उज्वल और सुरक्षित हो सके। मै आशा करता हुं की जादवजी से प्रेरणा लेकर यह लेख पढने वाला हर एक व्यक्ति कम से कम एक पौधा जरूर लगाएगा और उसकी हिफ़ाज़त करेगा।

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इमेज स्रोत : विकिपीडियासे साभार