उस दिन सुबह रोज कि तरह में घर से नीकलकर कॉलेज के लिए जा रहा था। वैसे तो कॉलेज को जाने के लिए एक पक्की सडक बनवाई गयी है लेकीन सडक की इतनी दुर्दशा है की पता नही हर साँस के साथ कितनी धूल और मिट्टी फेफडौं में चली जाती है। इसलिए में सदैव ही दूसरे रास्ते से जाता हूं। पूना में होते हुए भी वह दुसरा रास्ता खेतो और बहूत सारे फार्म हाऊसेस से गुजरता है। साधारण पाँच किलोमीटर पैदल चलने के बाद मै कॉलेज पहूचता हूं। उस दिन भी रोज की हि तरह में उस रास्ते से गुथर रहा था तभी अचानक मेरी नजर रास्ते के किनारे खडे खंबे पे गई और मेरा मन दुख से भर गया। एक अभागी कौऐ की लाश वायर से लटक रही थी। उस दिन मनुष्य के आधूनिक विज्ञान के करिष्मे के कारण एक और जान चली गयी।
यह केवल एक ही उदाहरण नही है, और भी अनगिनत उदाहरण है जहाँ पर पशु पक्षीयौं को अपनी जान से हात गवाना पडा है। गाव में बिजली के खंबो से कितने ही बंदरो की जान गयी है। पता नही हम मनुष्य कब ये समझेंगे की यह धरती हम अकेले मनूष्य की नही है। हमे सबका ध्यान और संतुलन बनाना चाहिए। यह सभी पेड पौधे पंछी हमारे सहयोगी तथा मित्र है। इस धरती पर सभी को जीने का समान अधिकार है परंतू हमारे कारण पता नहि ऐसे कितने ही जीवों की जान चली जाती है। मुझे लगता है की सभी बिजली की तारें भुमिगत होनी चाहिए कि जीससे किसी भी तरह का खतरा नहि हो सकता। पता नहि हमारे भारत देश ने अलग से पर्यावरण मंत्रालय क्युं बनवाया है। शायद उन्हे यह पता नहि कि पर्यावरण का मुलभूत अर्थ ही है "सभी जीव"। यह मंत्रालय शायद सिर्फ प्रदुषण और अपारंपारिक उर्जा स्तोत्रों पे ध्यान देता है।
अब उस बेचारे कौऐ की क्या गलती थी? उसका भी एक परिवार होगा, माँ, पिताजी, पत्नी और बच्चे होंगे। लेकीन बिजली कि खुली वायरों ने उसकी जान ले ली। चलो अब यही उम्मीद करते है कि एक दिन यह परिस्थिती बदल जाऐगी।
स्वपनील जी, जीस तरह का आज इंसान का व्यवहार है, वह देखते हुए तो यह नही लगता कि वह दिन जल्द आ सकेगा...
ReplyDeleteज्योतीजी आपने बिलकूल सही कहा। आज का समाज जिस रास्ते पे चल रहा है यह देखकर मुझे लगता है की अब तो कोई चमत्कार ही समाज को ठीक रास्ते पे लाएगा।
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