आज बहुत दिनो बाद
एक महत्वपूर्ण सामाजिक विषय पर लिखने
का मन हुआ
कारण था "युथ कि आवाज़" के कार्यक्रम का,
इस संस्था का
मुख्य उद्देश्य है
दुनियाभर मे चल
रहे अच्छाई को
सभी लोगों तक पहुंचाना। सभी
को मालूम है
कि आज दुनियाभर में
अनेक प्रकार के
अच्छे कार्य चल
रहे है। अनेक
सामाजिक संगठन दुनियाभर में काम कर
रहे है। अनेक महान लोग अपनी पुरी
जिंदगी समाज को
समर्पित कर चुके
है। हम जब
घर से बाहर
निकलते है तब
हम अपने आसपास
देखते है गरीबी, स्त्रियों पे
हो रहे अत्याचार, छोटे
मासूमो पर हो रहे अत्याचार, ग़रीब
किसानों कि आत्महत्या, दहेज
के लिये अपनी
जान गँवाने वाली बहू बेटियाँ, लेकिन
हम यह भी
देखते है कि
बहुत सारे संगठन और व्यक्ति इन
सब सामाजिक समस्याओं का समाधान खोजने
कि कोशिश कर
रहे है जैसे
कि माननीय सिंधुताई सपकाळ,
अण्णा हजारे, मेधा
पाटकर, बाबा आमटे,
प्रकाश आमटे, युसफा
मलाला, नेल्सन मंडेला,
कैलास सत्यार्थी, नरेंद्र दाभोलकर और
अन्य अनगिनत । लेकिन
आज मैं आपका परिचय एक ऐसे
व्यक्ती से करवा
रहा हुं कि
जो पूरे दुनियाभर को
बचाने कि कोशिश
मैं लगा है।
मैं बात
कर रहा हुं जादव पायेंग
कि, जी हां
जादव पायेंग। हम
सभी जानते हैं
की हम सामाजिक प्राणी
है, और समाज
हि हमारा सहारा
है। समाज के
प्रगति के लिये
और समाज मे
हो रही समस्याओ को
सुलझाने की कोशिश
बहुत सारे
लोग करते है
लेकिन हम सबसे,
हमारे समाज से
भी महत्वपूर्ण
है हमारी पृथ्वी
और हमारा अधिवास। मुझे
लगता है कि
सभी सामाजिक समस्यांओ से
बड़ी है पर्यावरण कि
समस्या । अगर पृथ्वी
का पर्यावरण हमारे
रहने के मुताबिक नही
रहेगा तो ज़रा
सोचिए कि क्या
होगा। जी हाँ,
ज़रा सोचों कि
पृथ्वी कि गर्मी
लगातार बढ़ने लगे
और ५० डिग्री
को पार करे
तो क्या होगा?
सोचों कि दुनियाभर कि
ऑक्सीजन अचानक खत्म
हो जाए तो
क्या होगा? क्या
उस वक्त भी
हमे इन बाकी
सामाजिक समस्याओं का
खयाल तक रहे गा?
तो इसका जवाब
है बिलकुल नहीं।
इस देश से,
इस दुनिया से, हम
सबसे महत्वपूर्ण है
हमारा पर्यावरण। अगर
इस पर्यावरण का
संतुलन बिगङ जाये
तो हम सब
मुसीबत में आ
जायेंगे। सिर्फ हम
हि नहीं तो
हमारे अगले पिढ़ी
का भविष्य अंधकार
में चला जायेगा। प्रकृति की अद्भुत देन है जंगल। इन जंगलों की वजह से हमें फल-फूल, जलावन के लिए लकड़ी, हरियाली, आदि मिलती है। इन जंगलों को जहां कुछ माफिया लोग अपने फायदे के लिए उजाड़ रहे हैं वहीं कुछ ऐसे भी महापुरुष हैं जो इनको बचाने में लगे हुए हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई के इस दौर में भरत मंसाता, जादव और नारायण सिंह जैसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपने संकल्प से अकेले दम पर वीराने में बहार ला दी। इसिलीये आज
में आपको एक
ऐसे व्यक्ती के
बारे में बताने
जा रहा हु
कि जिसने अपनी
पुरी जिंदगी हमारे
पर्यावरण को समर्पित कर
दि है।
जादव पायेंग
को संपूर्ण भारत
मे जंगल मानव
के नाम से
भी जाना जाता
है। जादव पायेंग
सम्मानित है भारत
सरकार कि पद्मश्री सम्मान से। जादवजी
हर रोज एक
हि काम करते
है और वो
है पेड लगाना
और उनकी हिफाज़त करना।
जी हा आपने
सही सुना है,
आज तक एक
अकेले आदमी ने
दुनिया मैं कही
भी इतने पेड
नही लगाएं है
कि जितने अकेले
जादवजी ने लगाएं
है। जादवजी जब
मात्र १६ साल
कीं उम्र के
थे तब उन्होने एक
दिन देखा कि
कई सारे साँप
सुखी हुई नदी
के तप्त रेत
में मरे पडे
है। यह देख
उनका हृदय बहुत
दुःखी हुआ और
उन्होने उस सारे
तप्त और रेतीले
जगह को हरे
भरे स्वर्ग मे
बदलने कि कसम
खाई। वह प्रदेश
था आसाम के
एक सुदूर जिले
जोरहाट का, वहाँ
पे था ब्रह्मपुत्रा नदी
का विस्तृत रेतीला
तट। जादवजी ने
तब साल 1979 मे
20 बांस के पेड
उसी जगह लगाएं
जहाँ पे उन्होने वो
सारे साँपो को तप्ती
रेत मे मरा
हुआ पाया था।
उस दिन के बाद से आज तक जादव जी ने कई प्रकार के पेड़ और पौधे लगाएं
है । आप सोच
रहे होंगे कि
एक अकेला आदमी
भला कितने पेड
लगा सकता है?
लेकिन आपको जानके
ख़ुशी और आश्यर्य होगा
कि आज वो
रेतीली जगह एक
पुरे हरे भरे
१३६० एकड़ जंगल
मे परावर्तित हो
गई है। आज
वो जंगल कई
तरह कि पक्षी
और प्राणियों का
घर बन चुका
है। उस जंगल
को मोलाई जंगल
कहा जाता है
कि जिसमे बहुत
सारे बंगाली शेर,
खरगोश, बंदर, हिरन,
हाथी और कई
प्रकार के पंछी
देखे जाते है।
इस जंगल
मे 100 हाथी हर
साल आते है
और लगातार छह
महिनो तक रहते
भी है। जादवजी
का काम सन
2008 मैं लोगो के सामने
आया। जादवजी का
जीवन बहुत हि
सीधा साधा है,
उनके पास कुछ
गायें और भैंसें
है कि जिनके
दूध से वो
अपना और अपने
परिवार का पालन
पोषण करते है।
जादवजी मानते है
कि पर्यावरण असंतुलन के
लिये आदमी खुद
जिम्मेदार है और
इसीलिए हर एक
को अपनी जिम्मेदारी उठा कर
हमारे पृथ्वी को
प्रदूषण से मुक्त
करना चाहिये और
ज्यादा से ज्यादा
पेड पौधे लगाने
चाहिए।
सभी मानव की
समस्यों से अधिक महत्वपूर्ण है पर्यावरण, अब अगर आप नही चाहते कि आपके अपने
नन्हें बच्चे भविष्य मैं गैस मास्क लगाकर घुमे तो हम सभी को हमारे पर्यावरण का
संतुलन बरक़रार रखना ही होगा । शायद आप मैं से
कई लोगो ने फिल्म “वॉल ई” देखि होगी, कि जिस मैं हमारी पृथ्वी प्रदुषण
के कारण रहने लायक नही रहती और सबको अंतरिक्ष में जाना पडता है। मैं जब भी जादवजी के
बारे मैं सोचता हु तब मुझे उस Wall E नामक रोबोट कि याद आती है कि जिसने अपनी जान
पर खेल के एक छोटे से पौधे को बचा के सब मानव जाती को पृथ्वी पे वापस लौटने
मैं मदद की । आज हमारे युवा पीढ़ि को जरुरत है जादवजी के आदर्शों पर चलने की,
की जिससे हमारा भविष्य उज्वल और सुरक्षित हो सके। मै आशा करता हुं की जादवजी से प्रेरणा
लेकर यह लेख पढने वाला हर एक व्यक्ति कम से कम एक पौधा जरूर लगाएगा और उसकी हिफ़ाज़त
करेगा।
* इमेज स्रोत : विकिपीडियासे साभार
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